Monday, April 8, 2013

Mere humsafar mere saath tum


Mere humsafar mere saath tum
Sabhi mausamon mein raha karo
Kabhi dhool ban ke urra karo
Kabhi phool ban ke ug'ga karo
Kabhi dhoop ban ke gira karo
Kabhi shaam ban ke chhaya karo

Mere humsafar mere saath tum
Kabhi chaand ban ke dikha karo
Kabhi taaron mein hansa karo
Kabhi saanso mein tum basa karo
Kabhi aansuon mein baha karo

Mere humsafar mere saath tum
Kabhi rangon main tum dikha karo
Kabhi khushbuon se chhua karo
Kabhi nazaron se tum chupa karo
Kabhi sapnon mein bhi mila karo

Mere humsafar mere saath tum
Kabhi aas ban ke dua karo
Kabhi hausala bhi bana karo
Kabhi intazaar bhi bana karo
Kabhi saath saath mere chala karo

Mere humsafar mere saath tum
Kabhi baarishon mein mila karo
Kabhi badalon mein chhupa karo
Kabhi hum se tum kuchh gila karo
Kabhi shuru ek naya silsila karo

Mere humsafar mere saath tum
Kabhi lehron mein tum baha karo
Kabhi sahilon pe mila karo
Kabhi yun he yaad aaya karo
Kabhi khayalon se na jaaya karo

Mere humsafar mere saath tum
Sabhi mausamon mein raha karo
Har khushi-o-gham mein raha karo
Hamesha saath mere raha karo
Har dam paas mere raha karo

Mere humsafar mere saath tum
Sabhi mausamon mein raha karo..


Thursday, August 23, 2012

थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है – रामधारी सिंह "दिनकर" / सामधेनी

वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल, दूर नहीं है;
थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है।
चिनगारी बन गई लहू की बूँद गिरी जो पग से;
चमक रहे, पीछे मुड़ देखो, चरण – चिह्न जगमग – से।
शुरू हुई आराध्य-भूमि यह, क्लान्ति नहीं रे राही;
और नहीं तो पाँव लगे हैं, क्यों पड़ने डगमग – से?
बाकी होश तभी तक, जब तक जलता तूर नहीं है;
थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है।
अपनी हड्डी की मशाल से हॄदय चीरते तम का,
सारी रात चले तुम दुख झेलते कुलिश निर्मम का।
एक खेय है शेष किसी विधि पार उसे कर जाओ;
वह देखो, उस पार चमकता है मन्दिर प्रियतम का।
आकर इतना पास फिरे, वह सच्चा शूर नहीं है,
थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है।
दिशा दीप्त हो उठी प्राप्तकर पुण्य-प्रकाश तुम्हारा,
लिखा जा चुका अनल-अक्षरों में इतिहास तुम्हारा।
जिस मिट्टी ने लहू पिया, वह फूल खिलायेगी ही,
अम्बर पर घन बन छायेगा ही उच्छवास तुम्हारा।
और अधिक ले जाँच, देवता इतना क्रूर नहीं है।
थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है।   रामधारी सिंह “दिनकर” (सामधेनी)

Monday, December 12, 2011

छूट चुकी है रेलःहिन्दी कविताः

Jaa chuke hain sab aur wahi khamoshi chaayi hai,
    Pasara hain har oar sannata, tanhai muskurai hai..

    Chhoot chuki hai rail,
    Chand lamho ki toh baat thi,

    kya raunak thi yahaan,
    Jaisi Saji koi mehfil khaas thi!!

    Ajnabi thae chehre saare,
    Phir bhi unse mulaaqaat thi..

    Bheji thi kisi ne apnayiyat,
    Salam mein woh kya baat thi..

    Ek pal thae aap Jaise Kausar,
    Ab bachi akeli raat thi…

    Chalo ab laut chale yahan sae,
    chhoot chuki hai rail
    Yeh ab guzari baat thi…

    Urte kaghaz,karte bayan,
    Inki bhi kisi sae ,
    do pal pehle kuch baat thi…

    Barr chale kadam,
    kanare un pateriyon
    kahani jinke roz ye saath thi…

    Phir aayegi dooji rail,
    phir cheeregi ye sannnata,
    jaise zindagi sae phir mulaqat thi…

    phir luatenge aur ,
    bhari kadmo sae, jaise
    koi gehri see baat thi.

    Chhoot chuki hai rail,
    Ab sirf kaali syaha raat thi.

अब इसी कविता को देवनागरी में लिखा गया है

    जा चुके है सब और वही खामोशी छायी है,
    पसरा है हर ओर सन्नाटा, तन्हाई मुस्कुराई है,

    छूट चुकी है रेल ,
    चंद लम्हों की तो बात थी,

    क्या रौनक थी यहॉं,
    जैसे सजी कोई महफिल खास थी,

    अजनबी थे चेहरे सारे,
    फिर भी उनसे मुलाक़ात थी,

    भेजी थी किसी ने अपनाइयत,
    सलाम मे वो क्या बात थी,

    एक पल थे आप जैसे क़ौसर,
    अब बची अकेली रात थी,

    चलो अब लौट चलें यहॉं से,
    छूट चुकी है रेल
    ये अब गुज़री बात थी,

    उङते काग़ज़, करते बयान्‍,
    इनकी भी किसी से
    दो पल पहले मुलाक़ात थी,

    बढ़ चले क़दम,
    कनारे उन पटरियों
    कहानी जिनके रोज़ ये साथ थी,

    फिर आएगी दूजी रेल,
    फिर चीरेगी ये सन्नाटा
    जैसे जिन्दगी से फिर मुलाक़ात थी,

    फिर लौटेंगे और,
    भारी क़दमों से,जैसे
    कोई गहरी सी बात थी,

    छूट चुकी है रेल,
    अब सिर्फ काली स्याहा रात थी |

Wednesday, March 2, 2011

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Friday, September 24, 2010

गुल-ए-गुलज़ार



कुछ घाव कभी भरते नहीं

ख्वाबो की दरख्त में कुछ ख्याल कभी मिटते नहीं
बाते भूल भी जाओ पर कुछ चहरे जेहन से हटते नहीं
तबियत बदलने के लिए बदल दिया हमने ये शहर फिर भी
कुछ घाव मौसम बदलते ही लौटा लाते हे दर्द वही






दो पल की मोहब्बत

ज़िन्दगी बस इन्ही दो पल में सिमट जाती हैं
मेरी नजर मिलते ही उसकी पलकें झुक जाती हैं
न मेरी नजर हटती हैं, न उसकी पलकें उठती हैं
दोनों की जिद में धड़कने ट्रेन की रफ़्तार पकड़ती हैं
फिर में ही नज़र हटा लेता हु उसकी आबरू रखने के लिए
कुछ यु मेरी मोहब्बत रोजाना उसकी हया से मात खाती हैं


दूरियां – नज़दीकिया

नज़दीकिया कभी नाराज़गी का सबब नहीं बनती
और दूरियां कभी दरारों को पैदा नहीं करती
ये तो दिल से दिल मिलने की बात हे मितरा
कभी पास रहकर भी दूरियां घट नहीं पाती
और कभी दूर जाकर भी नज़दीकिया मिट नहीं पाती


बस फिर से बच्चा नहीं बना पाती
ज़िन्दगी तेरे आँचल में आखें रोज़ रो तो सकती हैं, पर हमेशा मुस्कुरा नहीं पाती
और तेरी ठोकरे हमें सयाना तो बना देती हैं, बस फिर से बच्चा नहीं बना पाती


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Friday, December 5, 2008

FUN MASTI..........




FUN IS A SOURCE OF HAPPINESS ...............

FUN IS END OF WORRINESS ...................

FUN IS A LIFE & LIFE IS A FUN..............

BUT ALL THINGS IS NOT A FUN,,,,,,,,,,,

BUT SOME THINGS A NEED OF FUN,,,,,,,,,,,

JUST LIKE LIFE HAVE FUN,,,,,,,,,,SO,,,,,,,

LETS HAVE A FUN,,,,,,,,,,& GET MORE FUN!!!!!!!!

Saturday, May 3, 2008

प्यार-ही -प्यार

हिचकियों से एक बात का पता चलता है,
कि कोई हमे याद तो करता है,
बात न करे तो क्या हुआ,
कोई आज भी हम पर कुछ लम्हे बरबाद तो करता है

ज़िंदगी हमेशा पाने के लिए नही होती,
हर बात समझाने के लिए नही होती,
याद तो अक्सर आती है आप की,
लकिन हर याद जताने के लिए नही होती

महफिल न सही तन्हाई तो मिलती है,
मिलन न सही जुदाई तो मिलती है,
कौन कहता है मोहब्बत में कुछ नही मिलता,
वफ़ा न सही बेवफाई तो मिलती है