Friday, September 24, 2010

गुल-ए-गुलज़ार



कुछ घाव कभी भरते नहीं

ख्वाबो की दरख्त में कुछ ख्याल कभी मिटते नहीं
बाते भूल भी जाओ पर कुछ चहरे जेहन से हटते नहीं
तबियत बदलने के लिए बदल दिया हमने ये शहर फिर भी
कुछ घाव मौसम बदलते ही लौटा लाते हे दर्द वही






दो पल की मोहब्बत

ज़िन्दगी बस इन्ही दो पल में सिमट जाती हैं
मेरी नजर मिलते ही उसकी पलकें झुक जाती हैं
न मेरी नजर हटती हैं, न उसकी पलकें उठती हैं
दोनों की जिद में धड़कने ट्रेन की रफ़्तार पकड़ती हैं
फिर में ही नज़र हटा लेता हु उसकी आबरू रखने के लिए
कुछ यु मेरी मोहब्बत रोजाना उसकी हया से मात खाती हैं


दूरियां – नज़दीकिया

नज़दीकिया कभी नाराज़गी का सबब नहीं बनती
और दूरियां कभी दरारों को पैदा नहीं करती
ये तो दिल से दिल मिलने की बात हे मितरा
कभी पास रहकर भी दूरियां घट नहीं पाती
और कभी दूर जाकर भी नज़दीकिया मिट नहीं पाती


बस फिर से बच्चा नहीं बना पाती
ज़िन्दगी तेरे आँचल में आखें रोज़ रो तो सकती हैं, पर हमेशा मुस्कुरा नहीं पाती
और तेरी ठोकरे हमें सयाना तो बना देती हैं, बस फिर से बच्चा नहीं बना पाती


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